भास्कराचार्य कृत लीलावती में गुणन की विविध विधियाँ
डॉ. आयुष गुप्ता
भारतीय ज्ञान परम्परा अनेक प्रकार के ज्ञानरूप बहुमूल्य रत्नों से भरी हुई है । संस्कृत ग्रंथों में केवल वैदिक साहित्य, अध्यात्म, दर्शन एवं व्याकरण मात्र हि नहीं बल्कि गणित, भौतिकी, रसायन एवं पर्यावरण विज्ञान से संबंधित अनेक विधाओं के ग्रंथ प्राप्त होते हैं। लीलावती गणित विषय से सम्बद्ध ग्रंथ है । इस ग्रंथ में गणितीय संक्रियाओं पर अनेक उदाहरण संक्रिया सहित प्राप्त होते हैं । भास्कराचार्य कृत लीलावती में गुणन की संक्रिया को पद्यों के माध्यम से स्पष्ट किया है।इन पद्यों को पाँच गुणन विधियों के रूप में अलग अलग करके उनका वर्णन किया जा रहा है। इन 5 विधियों में अंकों अथवा व्यंजकों की प्रकृति के आधार पर सरलतम विधि का उपयोग करके प्रश्नों को हल किया जा सकता है।लीलावती, भारतीय गणितज्ञ भास्कर द्वितीय द्वारा सन ११५० ईस्वी में संस्कृत में रचित, गणित और खगोल शास्त्र का एक प्राचीन ग्रन्थ है, इसमें 625 श्लोक हैं साथ ही यह सिद्धान्त शिरोमणि का एक अंग भी है। लीलावती में अंकगणित का विवेचन किया गया है।'लीलावती', भास्कराचार्य की पुत्री का नाम था। इस ग्रन्थ में पाटीगणित (अंकगणित), बीजगणित और ज्यामिति के प्रश्न एवं उनके उत्तर हैं।