abstract संस्कृतसबसेप्राचीनभाषाहै।इसभाषामेंदुनियांकीसबसेप्राचीनग्रन्थलिखागयाहै।वेद, वेदाङ्ग, उपनिषद, पुराणयहसबइसीभाषामेंलिखागयाहै।षड्वेदाङ्गोंमेंसेकल्पवेदाङ्गकेअन्तर्गतधर्मसूत्र, गृह्यसूत्र, कल्पसूत्र, श्रौतसूत्रआतेहैं, इनमेंसेप्रसिद्धधर्मसूत्रोंकानामहै- वसिष्ट, गौतम, बौधायन, आपस्तम्बइत्यादि।धर्मसूत्रोंकामुख्यविषयव्यक्तिकेजीवनकेआचारएवंकर्त्तव्यहैं।बौधायनधर्मसूत्रमेंकईसारीमहत्त्वपूर्णविषयोंकेबारेमेंवर्णनकियागयाहै, उनमेंसेएकप्रसिद्धविषयहैप्रायश्चित्त।
हरकिसीमनुष्यसेजानेअनजानेमेंकुछगलतियांहोजातीहैंजिसकाबुराअसरहमारेजीवनमेंएवंहमारेद्वाराकियेजानेबालेअच्छेकर्मोंकेऊपरपडताहै।जानेअनजानेमेंहुईगलतियोंकोहमप्रायश्चित्तकरकेसुधारसकतेहैं।प्रायश्चित्तशब्ददोशब्दोंकीसंयोगसेबनाहै-
’प्रायः’ जिसकाअर्थहैतपएवं ’चित्त’ अर्थात्संकल्पयादृढविश्वासहै।[1]इसकातात्पर्ययहहैकिइसकासम्बन्धतपकरनेकेसंकल्पसेहैयाइसविश्वाससेहैकिइससेपापमोचनहोगा।बौधायनधर्मसूत्रमेंकईसारेविषयोंकेप्रायश्चित्तकेबारेमेंवर्णनहै, उनविषयोंमेंसेकुछविषयजिसकाप्रायश्चित्तकरनासामाजिकमनुष्योंकेलियेअत्यन्तमहत्त्वपूर्णहै, उनविषयोंकोइसशोधपत्रमेंस्थानदियागयाहै।जैसे- चारोवर्णोंकेऊपरअत्याचारकरनेसेमनुष्यजिनपापोंकाभागिदारहोताहै, उनपापोंकेप्रायश्चित्तकेलिए निर्दिष्टकर्म, भ्रूणहत्या, मद्यपानकेप्रायश्चित्तस्वरूपआदिष्टकर्म।ब्रह्मचारीकेद्वाराभूलहोनेपरउसकेप्रायश्चित्तस्वरूपनिर्दिष्टकर्म।मनुष्योंकाप्रमुखअङ्गहैंज्ञानेन्द्रियां, साधारणमनुष्यकेज्ञानेन्द्रियांहमेसाचञ्चलरहतेहैंजिसकेकारणमनुष्योंसेगलतियांहोजातीहैं।ज्ञानेन्द्रियोंसेहोनेवालीगलतियोंकोसुधारनेकेलियेविधिगतप्रायश्चित्तस्वरुपकिनकर्मोंकाअनुष्ठानकरनाहोताहैयहसबविषयोंकोआधारकरकेप्रायश्चित्तकेबारेमेंइसशोधपत्रमेंउल्लेखकियाजाएगा।यहविषयनकेवलसमाजकेलिएलाभदायकहोगाअपितुआधुनिकयुगमेंप्रायश्चित्तकाऔचित्यकेबारेमेंसम्पूर्णज्ञानकीभीउपलब्धिहोतीहै।इसशोधपत्रमेंप्रायश्चित्तकेअनेकआयामकोउपस्थापनकरनेकाप्रयासकियागयाहै।
[1]- प्रायोःनामतर्पःप्रोक्तंचित्तंनिश्चयउच्यते।तपोनिश्चयसंयोगात्प्रायश्चित्तमितिस्मृतम्।अंगिरा (हरदत्त, गौ.२२/१; प्रायश्चित्तविवेकपृ.२)