दर्शनशास्त्रीय कर्म-प्रबंधन की अभिव्यक्ति में अन्तर्जालीय नाविन्य-बोध
डॉ. प्रदीप कुमार मीणा
जहाँ तक कर्म क्षेत्र की बात है तो भारतीय-दर्शन ने वैश्विक मानवता को निष्काम भाव से कर्म-युजित रहने का निर्मल निर्देश दिया है, जो शाश्वत प्रासंगिक है। आधुनिक युग में, व्यक्ति को करणीय कर्म की शिक्षा प्रदान करना अत्यावश्यक है, क्योंकि मानव सद्पथ से विचलित हो गया है। दर्शनशास्त्रीय कर्म-परम्परा के निर्वहन में पुण्यकर्म से पुण्योत्त्पत्ति एवं पापकर्म से पापोत्पत्ति का कर्म सिद्धान्त प्रतिष्ठापित हुआ है। वेदों तथा धर्मशास्त्रों के द्वारा विहित नित्य और नैमित्तिक समस्त मानसिक, वाचिक एवं कायिक कर्म निष्काम भाव से सम्पादन करना ही कर्मयोग का सारामृत एवं प्रधान निर्देश है।
प्रस्तुत आलेख के द्वारा कर्म-प्रबंधन की अभिव्यक्ति में अन्तर्जालीय नवाचारों को प्रमुख रूप से प्रकाश में लाया गया हैं जिन्हें चार पृथक-पृथक बिन्दुओं में विभाजित कर स्पष्टतः प्रतिपादित कर यह समझाने का प्रयत्न किया गया है कि किस प्रकार से भारतीय दर्शनों का कर्म-प्रबन्धन स्वोन्नति से वैश्विक-उन्नति तक का मार्ग प्रशस्त कर रहा है, उक्त अनुशीलनोपरान्त हृदय में तत्सम्बन्धी अद्य प्रासंगिक शोध आलेख की अन्तर्प्रेरणा प्रस्फुटित हुई, जो कि निम्नलिखित शुभ संकल्पित है।
डॉ. प्रदीप कुमार मीणा. दर्शनशास्त्रीय कर्म-प्रबंधन की अभिव्यक्ति में अन्तर्जालीय नाविन्य-बोध. Int J Sanskrit Res 2023;9(3):06-16. DOI: 10.22271/23947519.2023.v9.i3a.2078