पर्यावरण-चेतना अथर्ववेदीय भाष्यों के परिप्रेक्ष्य में
डाॅ. उमा शर्मा
अथर्ववेदीय ऋषियों ने मानव के सुस्वास्थ्य, सुसमृद्ध एवं सुखी जीवन की कामना से पर्यावरण की शुद्धि को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना है। उन्होंने क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर, पर्वत, सूर्य, औषधि आदि प्राकृतिक उपादानों एवं पर्यावरण को प्रदूषित होने से संरक्षण हेतु क्रियमाण यज्ञों को प्रदूषण रूपी राक्षस, वृत्र, असुर, यातुधान, कृमि, मृत्यु, विषय, अद्य आदि का अपद्यातक सिद्ध किया है। यज्ञों से ओजोन की रक्षा का उल्लेख किया है। ओषधियाँ प्रदूषण को नष्ट करती हैं तथा प्राण आॅक्सीजन प्राप्त कराती है।
इस प्रकार अथर्ववेद में इन पर्यावरणीय संरक्षक तत्वों तथा पर्यावरण संरक्षण की पुष्कल ज्ञान-राशि प्रतिपादित है। पर्यावरण को स्वस्थ रखने में सहायक सूर्य, अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु आदि की महिमा पौनः पुन्येन गायी गई है, जिनके महत्व को दृष्टिगत रखते हुए पर्यावरण का संरक्षण एवं सन्तुलन बनाने में कृतप्रयत्न रहना चाहिए।