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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2025, Vol. 11, Issue 4, Part A

संस्कृत साहित्य की उपयोगिता: कतिपय असाधारण प्रतिमाओं के विशेष संदर्भ में

शिल्पी गुप्ता

विविध भाषाओं की जननी ‘संस्कृत’ का भारतवर्ष में महत्व सदियों से है। उत्तर से दक्षिण तक, प्राचीन काल से आधुनिक समय तक संस्कृत में अनेक विशिष्ठ ग्रंथ- वेद, पुराण, उपनिषद्, महाकाव्य इत्यादि लिखे गये। ये ग्रंथ, संस्कृत में तो अपना प्रभुत्व रखते ही हैं, साथ ही इन ग्रंथों से अन्य कई विषयों- इतिहास, कला, पुरातत्व, धर्म को समझने में सहायता मिलती है। भारतीय स्थापत्य, मूर्तिकला, चित्रकला व अन्यकलाओं को विकसित करने में संस्कृत के शास्त्रीय गं्रथों का महत्वपूर्ण हाथ रहा है। मूर्तिकला के साधारण-असाधारण प्रतिमाओं के पहचान को ये ग्रंथ आसान बना देते है। मूर्तिकला के कतिपय विशिष्ठ उदाहरणों- शिव का सांध्य तांडव, ब्रह्मा का असाधारण वादक रूप, वैकुण्ठविष्णु की हयग्रीव शक्ति, त्रिदेव की संगीत मंडली, किन्नरादि को भलीभांति समझ पाना, इन साहित्य ग्रंथों के अभाव में नामुकिन है। भारतीय कला-पुरातत्व, इतिहास का संस्कृत से अटूट संबंध है। भारतीय ज्ञान को वास्तविक रूप में समझ पाने में संस्कृत भाषा व उसमें रचित गं्रथों का योगदान अमूल्य है। अतः आवश्यक है कि भारतीय अपने देश के मूल भाषा साहित्य की अस्मिता को अक्षुण्ण रखें तथा इसमें विद्यमान ज्ञान का मंथन कर भारतीय संस्कृति का गौरव जीवित रखें।
Pages : 38-40 | 65 Views | 27 Downloads


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How to cite this article:
शिल्पी गुप्ता. संस्कृत साहित्य की उपयोगिता: कतिपय असाधारण प्रतिमाओं के विशेष संदर्भ में. Int J Sanskrit Res 2025;11(4):38-40. DOI: 10.22271/23947519.2025.v11.i4a.2709

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