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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2025, Vol. 11, Issue 4, Part A

पाश्चात्य काव्य-चिन्तन में कवि की अवधारणा: सैमुअल टेलर कॉलरिज के विशेष सन्दर्भ में

सुमेधा जैन, डॉ. योगेश शर्मा

प्रस्तुत शोध पत्र का मुख्य उद्देश्य पाश्चात्य काव्य चिंतन की इसी समृद्ध और विविध परम्परा के आलोक में, इसके प्रारंभिक काल (प्राचीन यूनान) से लेकर आधुनिक विचारों तक, 'कवि' की अवधारणा के विकास और उसमें आए महत्वपूर्ण परिवर्तनों का एक विस्तृत और विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत करना है । इस लम्बी और वैविध्यपूर्ण यात्रा में, अठारहवीं शताब्दी के अंत और उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में उभरे स्वच्छंदतावादी आंदोलन और उसके प्रमुख सिद्धांतकारों का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है । इसी शृंखला में, सैमुअल टेलर कॉलरिज (Samuel Taylor Coleridge) एक ऐसे केंद्रीय और युगांतरकारी व्यक्तित्व के रूप में हैं, जिन्होंने न केवल अपनी कालजयी कविताओं से स्वच्छंदतावादी युग के काव्य परिदृश्य को समृद्ध किया, बल्कि अपने गहन आलोचनात्मक चिंतन, विशेष रूप से 'कल्पना' (Imagination) और 'कविता की जैविक एकता' (Organic Unity) संबंधी अपने मौलिक सिद्धांतों के माध्यम से, कवि की अवधारणा को एक नई दार्शनिक गहराई और दिशा प्रदान की है । कॉलरिज के विचारों ने न केवल उनके समकालीन कवियों (विशेषकर वर्ड्सवर्थ) को प्रभावित किया है, बल्कि परवर्ती साहित्यिक आलोचना और सिद्धांत के लिए भी आधार प्रदान किया है । अतः प्रस्तुत शोध-पत्र में पाश्चात्य चिंतन में कवि की अवधारणा के समग्र विकास का अन्वेषण करते हुए, सैमुअल टेलर कॉलरिज के विशिष्ट योगदान, उनके कल्पना सिद्धांत और पाश्चात्य काव्यशास्त्र के व्यापक संदर्भ में उनके अद्वितीय स्थान पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करने का प्रयास किया जाएगा ।
Pages : 19-27 | 35 Views | 18 Downloads


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How to cite this article:
सुमेधा जैन, डॉ. योगेश शर्मा. पाश्चात्य काव्य-चिन्तन में कवि की अवधारणा: सैमुअल टेलर कॉलरिज के विशेष सन्दर्भ में. Int J Sanskrit Res 2025;11(4):19-27.

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