भारतीय अलंकारशास्त्र का सर्व प्राचीन सम्प्रदाय भरतमुनि का रस सम्प्रदाय है।भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र मे विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः यह रससूत्र दिया इस रससूत्र के मुख्यतः चार व्याख्याकारों के नाम प्राप्त होते हैं,वे है --भट्टलोल्लट, शंकुक, भट्टनायक और अभिनवगुप्त। इन चार आचार्यों द्वारा रससूत्र पर की गई व्याख्या क्रमशः उत्पत्तिवाद, अनुमितिवाद, भुक्तिवाद और अभिव्यक्तिवाद के नाम से काव्यजगत् में सुविख्यात है । चार आचार्यों में आचार्य अभिनवगुप्त का अभिव्यक्तिवाद सर्वमान्य एवं सर्व प्रसिद्ध रहा है । वस्तुतः आचार्य अभिनवगुप्त ने नाट्यशास्त्र की अभिनवभारती टीका एवं ध्वन्यालोक की लोचन टीका में अत्यंत विशद व जटिल रूप में उक्त आचार्यों की व्याख्या को प्रस्तुत किया है साथ ही अपने वाद अर्थात् अभिव्यक्तिवाद का भी प्रतिपादन किया है। आचार्य मम्मट ने काव्यप्रकाश के चतुर्थ उल्लास में चारो आचार्यों द्वारा की गई व्याख्या को सरल व संक्षिप्त रीति से उपस्थित व विश्लेषित किया है तथा अभिनवगुप्त प्रतिपादित अभिव्यक्तिवाद के साथ अपनी सहमति प्रकट की है । प्रस्तुत शोधपत्र में रसाभिव्यक्तिवाद का मम्मटीय विश्लेषण सहृदयों के समक्ष उपस्थापित किया जायेगा ।