प्रस्थानत्रयी अर्थात् उपनिषद्, श्रीमद्भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र समन्वित रूप में सनातन संस्कृति और मानवधर्म के प्रमुख शास्त्र हैं। भारतीय संस्कृति ही नहीं; अपितु समस्त चेतनशील समाज प्रस्थानत्रयी से अनुप्राणित हुए हैं। प्रस्थानत्रयी का सर्वप्रथम ग्रन्थ उपनिषद् है; यह वैदिक प्रस्थान एवं वेदों का सारतत्त्व है; अतः उपनिषदों को वेदान्त भी कहा जाता है-‘वेदान्तोनामोपनिषद् प्रमाणं तदुपकारिणि शारीरकसूत्रादीनि च‘।1 उपनिषद् शब्द ‘उप‘ तथा ‘नि‘ उपसर्ग पूर्वक ‘षद्लृ‘ धातु में ‘क्विप‘ प्रत्यय के योग से बना है।2 ‘षद्लृविशरणगत्यवसादनेषु‘ के अनुसार षद्लृ धातु-1. विशरण 2. गति ;प्राप्तिद्ध तथा 3. अवसादन ;शिथिलीकरणद्ध इन तीनों अर्थों में प्रयुक्त होती है। शटराचार्य ने इन तीनों अर्थों का एक सुन्दर विवेचन प्रस्तुत किया है जो इस प्रकार से है-
अर्थात् जगत् प्रप४च की हेतुभूत अविद्या के नष्ट होने से विशरण, परमानन्द की हेतुभूत ब्रह्मज्योति की प्राप्ति होने से गति, एवं ब्रह्मज्योति के द्वारा जन्म-मरणादि दुःखत्रय के शमन होने से अवसादन, उक्त तीनों ही अर्थ अपेक्षित हैं। प्रस्थानत्रयी में द्वितीय ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता है। गीता यद्यपि श्लोक रूप में है परन्तु भगवद्वाणी होने के कारण यह मन्त्र है जिसमें ऐसे गूढ़ तत्त्व निहित हैं जो जन सामान्य का मार्गदर्शन करते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता का सारतत्त्व यह है कि परस्पर विरोधी तत्त्वों का संश्लेषणात्मक समन्वित ज्ञान और विचार ही जीवन के लिए उपयोगी है। प्रस्थानत्रयी का तृतीय ग्रन्थ ब्रह्मसूत्र है यह दार्शनिक प्रस्थान है और इसके सूत्र ज्ञानियों को ब्रह्मज्ञान प्रदान करते हैं। ब्रह्मसूत्र के रचयिता महर्षि बादरायण ने उपनिषदों के तत्त्वज्ञान को ही ब्रह्मसूत्र में समन्वित किया है।