International Journal of Sanskrit Research
2025, Vol. 11, Issue 3, Part D
वेदोक्त वनौषधियों का जनजातीय जडी-बुटी चिकित्सा ज्ञान
तीर्थानन्द मिश्रा, डॉ. प्रदीप कुमार मीणा
अनादिकालसेवनौषधीयऔषधज्ञानकीयहसम्पदाशाश्वतप्रवाहितहोरहीहै।समय-समयपरनयेस्रोतोंकोअन्तर्भुक्तकरयहज्ञानसम्पदाउपबृंहितहोतीरहीहै।यहीकारणहैकिवेदोद्धृतसेअद्यावधिइसकीउपयोगितामेंकोईअन्तरनहींआयाहै।प्राचीनताऔरनवीनताकासामञ्जस्यभारतीयसंस्कृतिकीविशेषतारहीहै।इसकास्पष्टउद्घोषमहाकविकालिदासने ‘पुराणमित्येवनसाधुसर्वंनचापिकाव्यंनवमित्यवद्यम्1केद्वाराकिया।वेदोक्तऔषधज्ञाननकेवलमावनकल्याणअपितुसमूलजगतमेंविद्यमानजीवात्माकेलियेकल्याणकारीरहाहै।प्राचीनकालसेहीदुगर्मस्थानोंमेंनिवासरतजनजातिवर्गवनस्पतिऔरवनौषधीयजडी-बुटियोंकेप्रयोगसेस्वयंकोस्वस्थ्यरखताआरहाहैजोकिअद्यावद्यिमेंभीदक्षिणीराजस्थानकेसुदुरक्षेत्रोंमेंनिवासरतजनजातीयसमुदायोंमेंदेखाजासकताहै।
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तीर्थानन्द मिश्रा, डॉ. प्रदीप कुमार मीणा. वेदोक्त वनौषधियों का जनजातीय जडी-बुटी चिकित्सा ज्ञान. Int J Sanskrit Res 2025;11(3):235-237.