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International Journal of Sanskrit Research
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2025, Vol. 11, Issue 3, Part B

पट्टाचार्य आचार्य विशुद्ध सागर जी के द्वारा वस्तुत्व महाकाव्य में जीवत्व की चर्चा

जयेन्द्र कीर्ति स्वामी

सिद्धांत चक्रवर्ती महाकवि सिद्धांत शिरोमणि सिद्धहस्त, आज्ञासिद्ध, सारस्वत-गणी, अभिजात-अंतेवासिन, शताब्दी देशनाचार्य चर्याशिरोमणि आगमप्रणित महामुनी परमपुज्य गणाचार्य पट्टाचार्य 108 श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के द्वारा इस सदी का अतिमहत्वपूर्ण महाकाव्य लिखा जिसे पूरी दुनिया में वस्तुत्व महाकाव्य के नाम से प्रचलित है।
वस्तुनो भावो वस्तुत्वम्, सामान्यविशेषात्मकं वस्तु।
आलापपद्धति
वस्तु के भाव को वस्तुत्व कहते हैं। वह वस्तु सामान्य विशेषात्मक है। अथवा अर्थक्रियाकारी है अथवा गुण पर्यायों को वास देने वाली है।
स्वपररूपोपादानापोहनव्यवस्थाप्यं हि वस्तुनो वस्तुत्वम्।
सप्तभंगोत्तरङ्गिनी
अपने स्वरूप के ग्रहण और अन्य के स्वरूप के त्याग से ही वस्तु के वस्तुत्व का व्यवस्थापन किया जाता है।
Pages : 119-127 | 31 Views | 18 Downloads


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How to cite this article:
जयेन्द्र कीर्ति स्वामी. पट्टाचार्य आचार्य विशुद्ध सागर जी के द्वारा वस्तुत्व महाकाव्य में जीवत्व की चर्चा. Int J Sanskrit Res 2025;11(3):119-127.

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