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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2025, Vol. 11, Issue 3, Part A

प्राचीन भारतीय ज्ञान परम्परा एवं संस्कृत कथा साहित्य

उमाशंकर सोनी

प्राचीन भारतीय समाज एवं संस्कृति ने आध्यात्मिक ज्ञान को अत्यधिक महत्त्व दिया है। भारतीय ज्ञान परम्परा में विश्व की सर्वाधिक बौद्धिक सम्पदा सन्निहित है। भारत की इस अविरल ज्ञान परम्परा का प्रवाह वैदिक वाङ्मय से लेकर समकालीन चिंतन की परम्परा में अनवरत विद्यमान है। इसमें दर्शन, नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र, काव्यशास्त्र और राजनीतिशास्त्र जैसे विधाओं का अध्ययन होता रहा है। भारतीय दर्शन विचारों का एक ऐसा समुच्चय है जिसका प्रभाव भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक विरासत पर पड़ा, जिसने लगभग 2000 वर्षों तक भारतीय उपमहाद्वीप के साथ ही एशिया महाद्वीप के राजनैतिक एवं सामाजिक परिवेश को व्यापक तौर पर प्रभावित किया।
भारतीय दर्शन की अविरल परम्परा में धर्म, राजनीति, न्याय, विधि, सरकार और समाज से संबंधित विचारों का गहन विश्लेषण किया गया है। इसने न केवल आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन की रूपरेखा प्रस्तुत की, बल्कि राजनैतिक दृष्टिकोण से भी समाज के संचालन की दिशा निर्धारित की, यद्यपि समय के सापेक्ष से पश्चिमीकरण ने भारतीय ज्ञान परम्परा को अत्यधिक प्रभावित किया, तथापि भारत सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भारतीय ज्ञान परम्परा को पुनः स्थापित का प्रयास किया जा रहा है। इसके माध्यम से समाज में भारतीय दर्शन और विचारधारा की महत्ता को पुनः स्थापित करने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। भारतीय ज्ञान परम्परा का इतिहास अत्यंत समृद्ध और गौरवमयी रहा है, जिसने विश्व की कई सभ्यताओं को प्रभावित किया है। इस ज्ञान परम्परा में समाहित संस्कृत कथा साहित्य के सामाजिक, राजनैतिक और नैतिक सिद्धांतों का गहरा अध्ययन, अनुशीलन और विश्लेषण तथा संस्कृत कथाओं में निहित शिक्षाओं का ज्ञान समकालीन समस्याओं के समाधान में सहायक हो सकता है।
विश्व कथा साहित्य में सर्वश्रेष्ठ कथा साहित्य संस्कृत का है। कथा साहित्य का उद्‌गम स्रोतभारतीय कथा साहित्य को ही माना जाता है इसलिए भारतीय कथा साहित्य को कथा साहित्य का जनक भी कहा जा सकता है। भारतीय कथा साहित्य में संस्कृत कथा साहित्य का विशिष्ट महत्त्व है। संस्कृत कथाओं में भारतीय दर्शन संस्कृति लोक व्यवहार कार्यकलाप तथा भारतीय जीवन की झाँकी प्राप्त होती है। भारतवर्ष के विविधतापूर्ण वातावरण में विस्मय का बहुत अधिक प्रचार-प्रसार हुआ। मानव की प्रकृति भी स्वाभाविक रूप से कौतुहल से परिपूर्ण होती है अतः इसी प्रकृति को चरितार्थ करने का व्यापक प्रयास संस्कृत कथा साहित्य में हुआ है। संस्कृत साहित्य में कथाएँ केवल कौतुकमयी प्रवृत्ति को चरितार्थ- करने के लिए नहीं, अपितु धार्मिक शिक्षण के लिए भी प्रयुक्त की गई हैं। संस्कृत कथा साहित्य में पशु-पक्षी या अन्य जीव को मनुष्य के प्रतीक के रूप में रखा गया है। अतः आबालवृद्ध सभी संस्कृत कथा साहित्य की मनोहरता पर आकर्षित होते हैं।
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How to cite this article:
उमाशंकर सोनी. प्राचीन भारतीय ज्ञान परम्परा एवं संस्कृत कथा साहित्य. Int J Sanskrit Res 2025;11(3):10-16. DOI: 10.22271/23947519.2025.v11.i3a.2633

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