आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी-रचित मानवी में प्रेम-तत्त्व
कुलदीप सिंह, पूर्णचंद्र उपाध्याय
प्रेम एक सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक भाव है। प्रेम-तत्त्व मनुष्य मात्र में ही नहीं, अपितु संपूर्ण चराचर जगत् में निरवच्छिन्न रूप में विद्यमान है। चूंकि साहित्य समाज का दर्पण कहा गया है, अतः संस्कृत साहित्य में चिरन्तन काल से प्रेम विविध रूपों में प्रतिफलित हुआ है। आधुनिक संस्कृत साहित्यकारों में अग्रगण्य आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी विरचित मानवी बालोपन्यास में प्रेम-तत्त्व आद्योपान्त मुखरित हुआ है। मानवी बालोपन्यास में अभिव्यंजित प्रेम-तत्त्व मानवीय प्रेम की सीमाओं से निकलकर संपूर्ण प्रकृति से प्रेम की पराकाष्ठा तक पहुंच गया है।
कुलदीप सिंह, पूर्णचंद्र उपाध्याय. आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी-रचित मानवी में प्रेम-तत्त्व. Int J Sanskrit Res 2025;11(1):168-171. DOI: 10.22271/23947519.2025.v11.i1c.2564