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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2025, Vol. 11, Issue 1, Part A

अथर्ववेद मे पर्यावरण उपासनाः आधुनिक विश्व के सन्दर्भ में

पवनकुमार शर्मा

भारतीय संस्कृति के मूलतत्त्व हमें वेद में प्राप्त होते हैं चारों वेद जहां विभिन्न शास्त्रों तथा विचारों के उद्गम स्थान है वही यह ज्ञान के उस अनंत ब्रह्मांड का भी प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे हम जितना भी अन्वेषण करें वह फिर भी शेष रह जाता है। समसामयिक विषय पर्यावरण के बारे में वर्तमान में संपूर्ण विश्व में बहुत कुछ विचार किया जा रहा है और इसमें सुधार हेतु विभिन्न चिंताएं व्यक्त करते हुए पर्यावरण विशेषज्ञ द्वारा चेतावनी भी दी जा रही है जिसके फल स्वरुप विभिन्न स्तरों पर कार्यक्रम भी किए जा रहे हैं किंतु इनसे विशिष्ट रूप से अथर्ववेद में पर्यावरण के विषय में विचार किया गया है। वह एक सार्वभौमिक संदेश आधुनिक समाज को देता है। इस संदेश से ग्लोबल वार्मिंग के समय में वेदों की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ जाती है। अथर्ववेद संहिता में जल की माता के रूप में उपासना कर जल चिकित्सा की ओर निर्देश किया गया है। जल के भूमिगत और वर्षा के रूप में प्राप्त स्वरूप का सम्मान किया गया है। नदियों के प्रवाह के साथ वायु और पक्षियों के क्षेम की कामना की गई है। कृषि सूक्त में जहां जोती हुई भूमि को प्रणाम किया गया है और उससे ऐश्वर्य की कामना की गई है। यह मृदा संरक्षण के प्राचीनतम विचार का प्रतिनिधित्व करता है। मंडूको अर्थात मेंढकों को संबोधित कर वर्ष भर व्रत पालन करने वाले ब्राह्मण अथवा तपस्वियों से उनकी उपमा दी गई है। यह जलवायु और इसके घटकों के प्रति उपासना की अभिव्यक्ति है। गायों की कल्याणकारी ध्वनि से घरों की पवित्रता चाही गई है जो कि ध्वनि से पवित्रता के संबंध का प्रतिपादन करता है अर्थात उत्तम ध्वनि स्वस्थ पर्यावरण को उत्पन्न करने में सहायक है। पृथ्वी सूक्त में विशेष रूप से पृथ्वी की उपासना की गई है। इस तरह अथर्ववेद में पंचमहाभूतों की उपासना के साथ इसके अंदर समाविष्ट विभिन्न चराचर तत्वों की स्थिति का वर्णन करते हुए उनके विशिष्ट स्वरूप को उल्लेखित किया गया है। सारांशतः अथर्ववेद से सार्वभौम पर्यावरण संदेश हमारे आधुनिक समाज को मिलता है जो निश्चित रूप से पहले के अपेक्षा वर्तमान में अधिक प्रासंगिक है जबकि मानव सभ्यता हेतु अब तक ज्ञात सबसे अनुकूल इस ग्रह पर जीवन की संभावनाओं को खतरा उत्पन्न हो रहा है अतः अथर्ववेद का पर्यावरण संदेश विशेष रूप से विचारणीय एवं अनुकरणीय है।
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How to cite this article:
पवनकुमार शर्मा. अथर्ववेद मे पर्यावरण उपासनाः आधुनिक विश्व के सन्दर्भ में. Int J Sanskrit Res 2025;11(1):21-23. DOI: 10.22271/23947519.2025.v11.i1a.2542

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