यह सर्वविदित एवं सर्वसम्मत है कि मातृशक्ति के बिना न केवल परिवार अपितु समाज एवं राष्ट्र का भी सुव्यवस्थित चल पाना असम्भव है। अर्थात् माता वृक्षरूपी समाज का बीजरुप है। और बीज को गलना पड़ता है तब जाकर वह एक स्वस्थ सुन्दर फलदार वृक्ष को जन्म देता है। उसी प्रकार सम्भवतः नारी के जीवन में नैरन्तर्येण संघर्ष बिना ही रहता है वह हर रूप में स्वयं को गलाती है। नित निरन्तर संघर्ष करती है, समाज के निर्माण के लिए, उसे परिपुष्ट करने के लिये । संसार प्रगतिशील है अतः स्त्रियों के कार्यक्षेत्र में भी प्रगतिशीलता है। अब वह समय नहीं रहा कि स्त्रियों को घर की चारदीवारी में कैद रखा जाए। घर की देखभाल करना स्त्रियों का मुख्य कार्य है आगे भी रहेगा। फिर भी उनका संबंध सीमित नहीं रखना चाहिए। विभिन्न परिस्थितियों के कारण उन्हें जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने की आवश्यकता हो सकती है। प्राचीन काल से वर्तमान तक स्त्रियों जो कार्य कर रही है उसके विषय में जितना भी कहा जाये उतना ही कम होगा। झांसीरानी लक्ष्मी बाई, जोधाबाई, इन्दिरा गांधी, अपाला, लोपामुद्रा, मातगिनी, भगिनी निवेदिता, मदर टेरेसा आदि महिलाओं ने जो समाज के लिए किया वह आजीवन इतिहास में स्मरणीय है। नारी के बिना कोई कार्य सम्पूर्ण नहीं हो सकता। समाज निर्माण में मातृशक्ति की भूमिका अपरिसीम है। नारी पुरुष एक दूसरे से परिपूरक है। नारी के बिना जगत असम्पूर्ण है, सम्पूर्ण रूप में असम्भव है।