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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2024, Vol. 10, Issue 5, Part B

आचार्य शांतिदेव द्वारा विरचित बोधिचर्यावतार में ध्यान पारमिता का स्वरूप

हितेश शर्मा, डाॅ. लता देवी

इस चराचर जगत् में सभी सत्त्वों को भय तथा पीड़ा से मुक्ति प्रदान करने के लिये जब बोधिसत्त्व बुद्धत्व प्राप्ति हेतु अपनी षट् पारमिताओं की यात्रा प्रारम्भ करता है तो वह सर्वप्रथम बोधिचित्त का ग्रहण कर दान पारमिता को पूर्ण करता है। उसके पश्चात् स्मृति तथा संप्रजन्य द्वारा चित्त की रक्षा कर शील पारमिता, जगत् को क्षमा कर क्षान्ति पारमिता तथा बोधि प्राप्ति के लिये परिश्रम अथवा उद्योग कर वीर्य पारमिता को पूर्ण कर ध्यान पारमिता की ओर अग्रसर होता है। बौद्ध सम्प्रदाय में दो संभार कहे गये है। पुण्य संभार तथा ज्ञान संभार। दान पारमिता से लेकर ध्यान पारमिता तक सभी पारमितायें पुण्य संभार के अन्तर्गत आती है पुण्य संभार का अन्तिम पड़ाव ध्यान पारमिता है जिसमें साधक इस सम्पूर्ण संसार के विषयों से अपना ध्यान हटाता है तथा प्रज्ञा पारमिता में अपना ध्यान केन्द्रित करता है। सांसारिक विषयों के नुकीले दंत छिपे होते है। वह सभी मनुष्य की मुक्ति के मार्ग को अवरोधित करते हंै। इसलिये बोधिसत्त्व को इन विषयों से दूर रहने की आवश्यकता है।
Pages : 62-64 | 235 Views | 109 Downloads


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How to cite this article:
हितेश शर्मा, डाॅ. लता देवी. आचार्य शांतिदेव द्वारा विरचित बोधिचर्यावतार में ध्यान पारमिता का स्वरूप. Int J Sanskrit Res 2024;10(5):62-64.

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