भारतीय ज्ञान प्रणाली के सन्दर्भ में विद्यार्थियों में नेतृत्व गुणों का विकास
डा. गणेश ति. पण्डित] विनय कुमार शुक्ल
भारतीय ज्ञान प्रणाली एक अति प्राचीन और व्यापक ज्ञान प्रणाली है, जिसको पूर्णतः समझना सरल नहीं है । इसका स्रोत भारतीय वाङ्मय में निहित है, जो संस्कृत वाङ्मय पर आधारित है । भारतीय ज्ञान परम्परा के अधिकाधिक तत्त्व संस्कृत वाङ्मय में लिपिबद्ध होने के कारण इसका अध्ययन अनिवार्य हो जाता है । संस्कृत वाङ्मय में वेद, पुराण, इतिहास, काव्य, नाटक, कृषि, वाणिज्य, अर्थशास्त्र, सङ्गीत एवं नृत्य वाद्य आदि कलाएँ एवं विभिन्न प्रकार के विशिष्ट ज्ञान-विज्ञान समाहित हैं । अतः भारतीय ज्ञान प्रणाली का समग्र अध्ययन और अवबोध संस्कृत वाङ्मय के गहन अध्ययन से संभव है ।
संस्कृत वाङ्मय में छात्रों में नेतृत्व गुणों के विकास के लिए विभिन्न उपागम बताए गए हैं । आदर्श नेता के अनेक गुणों का वर्णन किया गया है, जिनमें श्रीराम को आदिकाव्य में एक आदर्श नायक के रूप में वर्णित किया गया है । व्यक्ति को राम जैसा नेता बनना चाहिए, न कि रावण जैसा, यह प्रायः कहा जाता है । "रामादिवत् प्रवर्तितव्यं न रावणादिवत्" यह आदेश भी है और उपदेश भी ।
संस्कृत साहित्य में छात्रों में नेतृत्व गुण विकसित करने के अनेक उपाय बताए गए हैं । भगवद्गीता में ज्ञान-विज्ञान-तृप्तात्मा की सङ्कल्पना प्रस्तुत की गई है । शास्त्रोक्त पदार्थों को समझने का नाम ज्ञान है और शास्त्र से समझे हुए भावों को वैसे ही अपने अन्तःकरण में प्रत्यक्ष अनुभव करने का नाम विज्ञान कहा गया है । इस प्रकार के ज्ञानी एवं विज्ञानी व्यक्ति ही कुशल नेता बन सकते हैं । संस्कृत वाङ्मय में छात्रों में नेतृत्व गुण विकसित करने के कई उपाय बताए गए हैं जिनका विश्लेषण इस शोध लेख में किया गया है ।
डा. गणेश ति. पण्डित] विनय कुमार शुक्ल. भारतीय ज्ञान प्रणाली के सन्दर्भ में विद्यार्थियों में नेतृत्व गुणों का विकास. Int J Sanskrit Res 2024;10(4):86-89. DOI: 10.22271/23947519.2024.v10.i4b.2423