राजनीति के परम ज्ञाता महाकवि भारवि ने अपने प्रौढ़ पाण्डित्य को महाकाव्य ‘किरातार्जुनीयम्’ में पिरो दिया है। राजा का आचरण, साम, दान, दण्ड, भेद इन चार उपायों का प्रयोग, राजनीति के षड्गुण, आश्रितों के प्रति उसका व्यवहार, राजा की नीतियाँ, मन्त्रशक्ति की गोपनीयता, गुप्तचर व्यवस्था, क्षत्रिय धर्म इन अनेक विषयों का उन्होंने दुर्योधन और युधिष्ठिर के माध्यम से विश्लेषण किया है। किरातार्जुनीयम् के प्रथम सर्ग में हमें राजनीति विषयक सारगर्भित चिन्तन उपलब्ध होता है जो उनकी शैली की अर्थगम्भीरता के साथ-साथ उनके राजनैतिक नैपुण्यता को भी प्रदर्शित करता है।