किसी भी सभ्यता की उन्नति एवं श्रेष्ठता का आकलन तत्कालीन समाज में नारियों की स्थिति से किया जा सकता है। विश्वगुरु के नाम से प्रसिद्ध भारत देश की सभ्यता अपने दीर्घ इतिहास की विभिन्न कालावधियों में नारी दशा के दृष्टिकोण से उच्चता तथा निम्नता के मध्य विभिन्न सोपानों पर स्थित रही हैं। वैदिककालीन भारतीय समाज प्रायः पुरूष प्रधान रहा हैं। तथापि नारियों को पुरूष के समान सम्मानजनक स्थान प्राप्त था। जिसका मुख्य कारण स्त्री शिक्षा ही हैं। प्रस्तुत शोधालेख में वैदिक कालीन नारी शिक्षा को दर्शाने का प्रयास किया गया हैं। जिससे पाठकगण नारी शिक्षा के महत्व से परिचित हो सके।