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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2024, Vol. 10, Issue 1, Part C

नाट्यपरम्परागत रंगमंच एवं चित्रकला

डाॅ. दीपिका गोयल

नाट्यरम्परा पर दृष्टिपात करने से यह समझने में अधिक ऊहापोह करने की आवश्यकता नहीं रह जाती कि भारतीय नाट्याचार्यों और रंगकर्मियांे की रंगमंचीय अवधारणा सुस्पष्ट की। रंगमंच को इतर कलाओं के साथ चित्रकला का भी पूर्ण सहयोग मिला। रंगकर्मियों और चित्रकर्मियों के अन्योन्याश्रित सहयोग का सुपरिणाम भी भारतीय रंगमंच की समृद्धि में एक कारण रहा है। संस्कृत नाटक और रंगमंच का चरम उद्देश्य कला का सहारा लेकर दर्शकों को लोकोत्तर आनन्द प्रदान करके रसानुभूति कराने का रहा है। रूपकों में पात्रों की वेशभूषा, उनका श्रृगांर, रंगमंच की कलात्मक ढंग से सजावट, प्रकृति-चित्रण आदि सभी कार्य चित्रकला के बिना अधूरेे हैं। अतः रंगमंच पर उसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता।
Pages : 154-156 | 85 Views | 37 Downloads


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How to cite this article:
डाॅ. दीपिका गोयल. नाट्यपरम्परागत रंगमंच एवं चित्रकला. Int J Sanskrit Res 2024;10(1):154-156.

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