गणित को केवल अंक एवं कुछ विशेष चिह्नों वाली एक विधा समझना हमें हमारे मूल से उसी प्रकार दूर ले जाती है जैसे अपने मूल ग्रंथों को छोड़कर द्वितीयक ग्रंथों या गाइड जैसी पुस्तकों का सहारा लेकर गाइड आदि द्वितीयक पुस्तकें हमें विषय के मूल भाव से विचलित कर देती हैं। गणित को पढ़ते अथवा पढ़ाते समय दृष्टि यह होनी चाहिए कि यह गणितीय सूत्र, संक्रिया, समीकरण अथवा प्रश्न किस व्यापक अवधारणा की ओर संकेत कर रहा है। यदि गणित का अध्यापक कक्षा में इस प्रकार की दृष्टि देने में सफल हो जाता है, तो उसके छात्र जीवन की calculation आसानी से समझकर बहुआयामी चिन्तन करने में सफल हो सकते हैं।यदि गणित का अध्यापक केवल प्रश्नोत्तर एवं परीक्षा में अच्छे अंकों की प्राप्ति मात्र उद्देश्य को अपने मन में रखकर अध्यापन करता है, तो गणित का ज्ञान लेकर भी जीवन का गणित सिद्ध नहीं हो सकता।गणित के वास्तविक एवं व्यापक उद्देश्य को समझने के लिए आवश्यक है अंकीकरण (Digitisation) को समझना। अंकीकरण को समझने की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि जिस अवधारणा का अंकीकरण होता है, वास्तव में वही मूल विषय है। अंक केवल उस भौतिक वस्तु अथवा भाव को व्यक्त करने का एक सरल माध्यम है ।