सूर्य सृष्टि की आत्मा है कालपुरूष की आत्मा के रूप में भी सूर्य को स्वीकार किया गया है। ग्रहों के मंत्रिमण्डल में सूर्य को राजा कहा गया है। सांसारिक जीवन में भी राजयोग का कारक सूर्य को ही माना जाता है। आत्मा कर्माध्यक्ष है, कर्ता नहीं। जीव कर्ता भोक्ता है। जीव स्वकर्मवश सुख दुःख पाता है। ”मैं करता हूँ”-ऐसा कहना उचित नहीं। कर्म ही कर्म को करा रहा है।