वेद भारतीय संस्कृति के मूल स्रोत है, इनकी प्राचीनता भारत में ही नहीं अपितु विश्व विश्रुत है क्योंकि भारतीय के अतिरिक्त अनेक विदेशी विद्वान् भी प्रारंभिकता, वैज्ञानिकता, तार्किकता और प्रामाणिकता की अपेक्षा से भारतीय वेदों की ओर प्राय: गहरी अपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं। यही वेद हमारी सभ्यता को उच्च कोटि तक पहुँचाने वाले ग्रंथ-रत्न हैं। इन्ही से पुराण- इतिहास, धर्म- दर्शन, ज्ञान-विज्ञान, शास्त्र-काव्य आदि विविध धाराएं विभिन्न रूपों में प्रवाहित हुई हैं। सनातन धर्म के आचार-विचार, रहन-सहन, धर्म-कर्म तथा व्यावहारिक जीवन के समस्त पहलुओं को भली-भाँति समझने के लिए वेदों का ज्ञान आवश्यक है। वैदिककालीन आर्थिक जीवन को ध्यान में रखते हुए ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण, आरण्यक, आदि भारत के संस्कृति को सुरक्षित रखने वाले प्रत्येक ग्रंथों से ग्रहण करके प्रस्तुत किया गया है। जिससे वैदिक काल के ग्रामीण तथा नागरिक व्यवस्थाओं में अर्थव्यवस्था की क्या? स्थिति थी इस प्रश्न का स्पष्टीकरण होता है।