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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2023, Vol. 9, Issue 5, Part B

कला एवं कला का इतिहास : संस्कृत साहित्य के परिप्रेक्ष्य में

डॉ. विवेक कुमार शुक्ल

भारत का ज्ञान-विज्ञान अत्यंत प्राचीन है । समस्त प्रकार के कला-कौशलों का प्रारम्भ भी भारतीय ज्ञान परम्परा में ही देखा जाता है । जब हम उपवेदों को देखते हैं तो वेद सदृश उपवेद में स्थापत्यवेद, शिल्पवेद तथा गान्धर्ववेद अन्यतम दिखाई पड़ते है । इन्हीं के द्वारा भारतीय समाज में कला का विस्तार हुआ है । कला तथा संगीत आदि से रहित मनुष्य को शाक्षात् पशु के समान माना गया है अतः भारतीय संस्कृति में कला का आदिकाल से ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है । यह विषय समाज जीवन का आधार रहा है । जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से यह विषय जुड़ा है इसके विना मनुष्य पूर्णता नहीं प्राप्त कर सकता है । इस शोध पत्र में शिल्पकला, नृत्यकला, नाट्यकला, युद्धकला, वास्तुकला, चित्रकला आदि का वर्णन तथा इसका प्रारम्भ कैसे हुआ यह बताया गया है । विषय विस्तार की दृष्टि से इसे शूक्ष्म किया है । समाज जीवन की दृष्टि से यह बहुत ही उपादेय है इस पर अन्य शोधों की असीम सम्भावना है । आज के युग में इन विषयों के माध्यम से व्यक्ति को जीविका/रोजगार भी प्राप्त हो सकता है ।
Pages : 108-112 | 535 Views | 139 Downloads


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How to cite this article:
डॉ. विवेक कुमार शुक्ल. कला एवं कला का इतिहास : संस्कृत साहित्य के परिप्रेक्ष्य में. Int J Sanskrit Res 2023;9(5):108-112.

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