राजस्थान के प्राचीन संस्कृत अभिलेखों का परिचय (12 वीं शताब्दी तक)
रेखा देवी शर्मा
राजस्थान में अभिलेख उत्कीर्ण कराने की परंपरा पर्याप्त प्राचीन रही है । राजस्थान में ये अभिलेख सहस्रों की संख्या में उपलब्ध हुए हैं तथापि अभी भी अनेक अभिलेख भूगर्भ अथवा खण्डहरों मे दबे हो सकते हैं। ये अभिलेख बहुधा शिलाओं, प्रस्तर पट्टों, भवनों या गुहाओं की दीवारों, मन्दिरों स्तूपों, स्तम्भों, मठों, तालाबों, सरोवरों, बावडियों, कूपों तथा खेतों के मध्य स्थापित शिलाओं पर उत्कीर्ण मिलते हैं। कई अभिलेख बीच रास्ते में स्थित होने के कारण अथवा खुले वातावरण में होने से नष्ट भी हो गए हैं। राजस्थान में प्राचीनतम आभिलेखिक प्रमाण कालीबंगा से प्राप्त हुए हैं ।यहां से प्राप्त कतिपय मुद्राओं पर जो लेख उत्कीर्ण हैं, उनके अक्षर हड़प्पा सभ्यता की लिपि के समान हैं । पुरालिपि शास्त्र की दृष्टि से इन लिपिबद्ध मुद्राओं का महत्व इस रूप में स्पष्ट है कि इनके आधार पर सेंधव लिपि की दिशा दाएं से बाएं निर्धारित की गई है ।1 अजमेर के निकट बड़ली से प्राप्त अभिलेख को भी पर्याप्त प्राचीन (लगभग पूर्व मौर्य युगीन) माना जाता है ।2 अशोक के ईसा पूर्व तृतीय शताब्दी के दो लेख बैराट से प्राप्त हुए हैं ।3 इनसे उसकी बौद्ध धर्म में रुचि रखने तथा इसे राजकीय सहयोग देने की पुष्टि होती है । बड़ली तथा बैराट से प्राप्त उपरोक्त लेख प्राकृत भाषा में हैं । इनके बाद संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण ईसा पूर्व द्वितीय प्रथम शताब्दी का घोसुण्डी - नगरी (प्राचीन मध्यमिका) से प्राप्त लेख महत्वपूर्ण है ।