आज आवश्यकता है भारतीय सभ्यता में स्थापित उच्चादशों एवं मूल्यों को समकालीन समस्याओं एवं चुनौतियों के संदर्भ में रखकर देखा जाए। विकास की वर्तमान प्रक्रिया ने समूचे प्राणिमात्र के अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है। नैतिक संस्कृति एवं मानवीय मूल्यों में गिरावट तथा पारिवारिक एवं सामुदायिक जीवन के ह्रास ने स्थिति को और अधिक गम्भीर बना दिया है। अकेलापन, सूनापन, व्यभिचार, नशाखोरी, स्वच्छंदता, तनाव, अवसाद से ग्रस्त जीवन तथा सामाजिक संघों की बढ़ती प्रवृत्तियाँ एवं घटनाएँ समुचित सामाजिक ताने बाने को ध्वस्त करती जा रही हैं। इसके परिणामस्वरूप भाव एवं भावनाएँ, मानवीय संबंध और संवेदनाएं भी दूषित होती जा रही हैं। इनसे लड़ने के लिए सबसे सशक्त अस्त्र है- शिक्षा।महर्षि दयानन्द सरस्वती ने भी शिक्षा को परिवर्तन का सशक्त माध्यम समझते हुए तत्कालीन शिक्षा पद्धति में कई परिवर्तन एवं परिवर्धन किए। महर्षि मनुष्य के जीवन में एवं भारतीय शिक्षा पद्धति में वेदों की महत्वपूर्ण भूमिका से भलीभांति अवगत थे इसीलिए उन्होंने अपनी शिक्षा पद्धति को वैदिक शिक्षा का सुदृढ़ आधार प्रदान किया। वैदिक शिक्षा पद्धति पर आधारित होने के कारण महर्षि दयानन्द सरस्वती की शिक्षा पद्धति लौकिक और पारलौकिक दोनों विधियों से मनुष्य की उन्नति का साधन बताती है। उनका मानना था कि बिना इंद्रिय संयम के मनुष्य के अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त नहीं हो सकता। जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए जिन सदगुणों की आवश्यकता होती है महर्षि दयानन्द ने अपनी शिक्षा पद्धति में उन सभी गुणों का उल्लेख किया है। उन्होंने अपनी शिक्षा पद्धति के माध्यम से न केवल वेदो में वर्णित शिक्षा के उद्देश्य को स्पष्ट करने का प्रयास किया बल्कि वैदिक शिक्षा पद्धति के आधार पर ही शिक्षा के पाठ्यक्रम को भी नियोजित किया। अतः उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में राजनीतिक उथल पुथल में लुप्त होती जा रही प्राचीन वैदिक शिक्षा पद्धति को महर्षि दयानन्द ने पुनः जीवित करने का प्रयास किया। वह भारतीय शिक्षा का वही पुरातन स्वरूप पुनः लाना चाहते थे जिसको ग्रहण करके मनुष्य ‘आर्य’ बने और निज स्वार्थों से ऊपर उठकर राष्ट्र एवं विश्व के कल्याण हेतु तत्पर हो। आशा है वर्तमान संदर्भ में यह शोध-पत्र शिक्षा के क्षेत्र में उपयोगी सिद्ध होगा।
डाॅ॰ पुष्पेंद्र जोशी, अनामिका. वर्तमान शिक्षा में दयानन्द चिन्तन की प्रासंगिकता. Int J Sanskrit Res 2023;9(5):37-40. DOI: 10.22271/23947519.2023.v9.i5a.2207