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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2023, Vol. 9, Issue 5, Part A

अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक का महत्त्व

डॉ. निशा गोयल

कालिदास आकाश में जगमगाते हुए नक्षत्रों के समान विश्व में सर्वोत्कृष्ट स्थान पर विराजमान हैं। इनको भारत का शेक्सपीयर भी कहा जाता है। इनकी प्रसिद्धि का कारण इनकी वैदर्भी शैली है। भाषा के सरल, सरस और मनोरम होने के कारण वह पूर्ण रूप से इनके वश में है। इनकी शैली ध्वन्यात्मक है। ये किसी भी बात का लम्बा-चौड़ा वर्णन न करके अत्यंत सूक्ष्म रूप में उसे प्रस्तुत कर देते हैं। इनकी भाषा पूर्ण रूप से पात्रों के अनुकूल है, जैसे कण्व ऋषि-जनोचित भाषा बोलते हैं और स्त्रियाँ स्त्रियों के अनुकूल भाषा बोलती हैं। ये वर्णन मे असाधारण कुशल हैं। इनके वर्णन में जीवंतता के दर्शन होते हैं। ये प्रकृति के वर्णन में अत्यन्त निपुण है। इनके नाटकों के संवाद संक्षिप्त, सरल और रोचक हैं। इन्होंने अपनी रचनाओं में उपमा और अर्थान्तरन्यास के साथ-साथ अनेक अन्य अलंकारों का भी प्रयोग किया है। यद्यपि ये श्रृंगार रस के वर्णन में सिद्धहस्त हैं , तथापि इनके अनुसार जो प्रेम विषय-वास‌ना पर आधारित है, वह वास्तविक प्रेम नहीं है। तपस्या से पवित्र हुए प्रेम को ही इन्होने स्वीकार किया है। दुष्यन्त का शकुन्तला के साथ प्रथम प्रेम बाह्य सौन्दर्य पर आश्रित था और विषय - वासना प्रधान था, अत: वह प्रेम सफल नहीं हुआ। वियोग के बाद दोनों का प्रेम तपस्या की अग्नि से पवित्र होकर सफल हुआ। इनके नाम से 41 रचनाएँ प्रचलित हैं परन्तु विद्वानों द्वारा सर्वसम्मति से इनके 7 ग्रन्थ- कुमारसम्भव एवं रघुवंश नामक दो महाकाव्य , ऋतुसंहार और मेघदूत नामक दो गीतिकाव्य, मालविकाग्निमित्र, विक्रमोर्वशीय तथा अभिज्ञानशाकुन्तल नामक तीन नाटक स्वीकृत हैं।
Pages : 28-32 | 232 Views | 107 Downloads


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How to cite this article:
डॉ. निशा गोयल. अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक का महत्त्व. Int J Sanskrit Res 2023;9(5):28-32.

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