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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2023, Vol. 9, Issue 4, Part C

आचार्य धनञ्जय के नाट्य भेदक तत्व की दृष्टि से अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक का अनुशीलन

आसुतोष कुशवाहा

संस्कृत रचनाधर्मिता के विविध विधाओं में रूपक या नाट्य को श्रेष्ठ माना गया है। इसकी रचना को समालोचको ने कवित्व की अन्तिम सीमा कहा हैं-नाटकान्तं कवित्वम्। नाटक में गद्य-पद्य दोेनोेें का समन्वय रहता है।इसमें श्रव्य तथा दृश्य काव्य का मिश्रण करते हुए कवि अभिनय की दृष्टि से संविधानक का प्रयोग करता है। आचार्य भरतमुनि नाटयशास्त्र (6/31) में कहते है। कि इस नाट्य संसार में सब कुछ रसमय होता है, रस के बिना यहां कुछ भी प्रवृत्त नही होता - न हि रसादृते कश्चिदप्यर्थः प्रवर्तते। महाकवि कालिदास ने मालविकाग्निमित्रम् (1/4) में लिखते है कि नाट्यं भिन्नरूचेर्जनस्य बहुधाप्येकं समाराधनम् अर्थात् कोई व्यक्ति किसी भी रूचि का क्यो न हो , उसे अपने अनुकूल विषय नाट्य जगत् में अवश्य मिल जायेगा ।प्रस्तुत शोध पत्र में कालिदास कृत अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक का अनुशीलन आचार्य धनंजय के नाट्यशास्त्रीय ग्रन्थ दशरूपक में प्राप्त नाट्य के भेदक तीन तत्व - वस्तु , नेता और रस को लेकर किया गया है।
Pages : 144-146 | 191 Views | 70 Downloads


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How to cite this article:
आसुतोष कुशवाहा. आचार्य धनञ्जय के नाट्य भेदक तत्व की दृष्टि से अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक का अनुशीलन. Int J Sanskrit Res 2023;9(4):144-146.

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