आचार्य धनञ्जय के नाट्य भेदक तत्व की दृष्टि से कर्णभारम् नाटक का अनुशीलन
आसुतोष कुशवाहा
संस्कृत साहित्य रचना परम्परा अपनी विविध विधाओ में अविच्छन्न रूप से विकसित हो रही है। इसी परम्परा में संस्कृत का काव्यशात्रीय आचार्यो ने काव्य को दो भागों में विभक्त किया है-1. श्रव्य 2.दृश्य। दृश्य काव्य के अन्तर्गत नाट्य (नाटक) ग्रन्थ आते है। क्योंकि इनका अभिनय रंगमंच पर किया जाता है। ये दर्शकों के द्वारा के द्वारा देखे जाते हैं। संस्कृत नाटक को समालोचको ने नाटकान्तं कवित्वम् कहा है अर्थात् नाटक कवित्व का चरम परिपाक है। वही श्रव्य काव्य (गद्य, पद्य, चम्पू, )की अपेक्षा दृश्य काव्य (नाटक) अधिक प्रभावशाली होता है। इसकी कथावस्तु में दृश्य और श्रव्य दोनो का भान एक साथ लोगोें को प्राप्त होता है क्यांेकि कवि अपने नाटको में कान्तासम्मित उपदेश के द्वारा मर्मस्पर्शी शैली में विविध प्रंसगो के माध्यम से संकेत करता है जो सामाजिको के लिए मार्गदर्शक तथा जीवनोपयोगी होता है। प्रस्तुत शोध पत्र में संस्कृत नाट्य साहित्य के कवि भास के एकांकी नाटक कर्णभारम् का अनुशीलन आचार्य धनंजय के नाट्यशस्त्रीय ग्रन्थ दशरूपक में प्राप्त नाट्य के भेदक तीन तत्व - वस्तु , नेता और रस को लेकर किया गया है।