भारतेन्दु के मौलिक नाटकों में भारतीय स्वतंत्रता का परिदृश्य
जितेन्द्र शुक्ला
आधुनिक हिंदी के साहित्य के जनक व देशहितचिन्तक पत्रकार भारतेन्दु बाबू का बचपन उस दौर में बीता जब देश में 1857 की क्रांति की ज्वाला बहुत तेजी से फैल रही थी। भारतेन्दु जी ने अपने नाटकों के माध्यम से और ख़ासकर मौलिक नाटकों के माध्यम से उस समय की उस जनता को जगाने का प्रयास किया जो कम पढ़ी लिखी थी या फिर अनपढ़ थी। भारतेन्दु जी के मौलिक नाटकों में हमें भारतीय स्वतंत्रता की अलख स्पष्ट दिखाई देती है।