संस्कृत काव्यशास्त्र में छः सिद्धान्त विद्वत्समाज में बहु काल से समादृत हैं। इन सिद्धान्तों में काव्य के मूल तत्त्व की गवेषणा की गयी है। आचार्य कुन्तक द्वारा विवेचित वक्रोक्ति सिद्धान्त इन छः सिद्धान्तों में महत्त्वपूर्ण है। आचार्य कुन्तक अपने ग्रन्थ ‘वक्रोक्तिजीवितम्’ में ‘वक्रोक्ति’ को काव्य का ‘जीवित’ अर्थात् प्राणतत्त्व प्रतिपादित किया है तथा काव्य के अन्य तत्वों को वक्रोक्ति का अङ्गभूत सिद्ध किया है। इस शोध प्रपत्र में वक्रोक्ति की दृष्टि से राजेन्द्रकर्णपूर का विवेचन किया जाएगा।