वर्तमान मानव समाज में परिस्थितियों से ज्ञात होता है कि धन का मानव समाज में विशेष महत्व है। जब तक व्यक्ति धनवान होता है उसका गुणगान होता है और उसका आदर, सम्मान होता है। धन जाते ही किसी भी व्यक्ति का अस्तित्व समाप्त हो जाता है मनुष्य का शरीर पहले जैसा ही रहता है आंख, कान, नाक, हाथ, पैर सब पहले जैसे बने रहते हैं। अपने सारे कार्य भी वह पहले जैसे ही करता है इंद्रियों का व्यापार भी पहले जैसा ही बना रहता है। मस्तिष्क भी वैसा ही कार्य करता है। अर्थ के अभाव मात्र से मस्तिष्क का रूप नहीं बदलता। धन का ज्ञान से बुद्धि से सीधा संबंध नहीं है। ज्ञानी और विद्वान व्यक्ति निर्धन भी हो सकता है। परंतु वर्तमान समय में हम देखते आ रहे हैं कि धन का अभाव होते ही उसका विशेष व्यक्तित्व समाप्त हो जाता है। मनुष्य के सब गुण रंग-रूप आकार प्रकार बोलचाल पूर्ववत् रहते हैं— किंतु एक धन का अभाव होते ही क्षणभर में उसका सामाजिक व्यक्तित्व धूल में मिल जाता है। हमारी समाज-रचना इस प्रकार की है कि उसमें धन का स्थान सबसे ऊंचा हो गया है।