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International Journal of Sanskrit Research
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2023, Vol. 9, Issue 2, Part D

प्लवङ्गदूतम् में अलङ्कार विमर्श

सत्येन्द्र लोधी

अलंकार शब्द लोक में आभूषण का वाचक है और ये आभूषण मानव शरीर के सौन्दर्य में अभिवृद्धि करते हैं ठीक इसीप्रकार काव्यालंकार भी शब्दार्थ के सौन्दर्य में वृद्धि करते हैं। परन्तु ये अलंकार जहाँ कहीं भी धारण करने पर शोभा में अभिवृद्धि नहीं करते हैं अतः इन अलंकारों के उचित सन्निवेश को ही साधु माना गया है। इसलिए वही कवि अच्छा माना जाता है जो अपनी रचना में इन अलंकारों का रसानुकूल प्रयोग करता है। अलङ्कारों के उचित समायोजन से काव्यसौन्दर्य में चमत्मकार उत्पन्न होता है इसी हेतु प्रायः पूर्वकाल से ही कवियों ने अपनी–अपनी कृतियों में स्वसामर्थ्यानुसार अलङ्कारों का प्रयोग किया है। आचार्य वनेश्वर पाठक ने अपनी विरह कविता में शब्दालङ्कार तथा अर्थालङ्कार दोनों का प्रयोग किया है। इस शोध पत्र का उद्देश्य आचार्य वनेश्वर पाठक की कृति प्लवङ्गदूतम् में अलंकार–योजना का अध्ययन प्रस्तुत करना है। अतः अलंकार के लक्षणों को प्रस्तुत करते हुए शोधार्थी के द्वारा इस काव्य के कुछ पद्यों का अध्ययन का प्रयास किया गया है।
Pages : 242-246 | 229 Views | 52 Downloads
How to cite this article:
सत्येन्द्र लोधी. प्लवङ्गदूतम् में अलङ्कार विमर्श. Int J Sanskrit Res 2023;9(2):242-246.

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