नीति का सामान्य अर्थ मानव व्यवहार का उचित और न्यायसंगत होना है । भारतीय साहित्य संसार में नीति के पर्याय रूप में ही धर्म शब्द आया है, जो मानव व्यवहार के लगभग हर पहलू की चर्चा करता है तथा तार्किक न्याय प्रदान करता है । 'मोक्षप्रद' शब्द नीति का आध्यात्मिक अर्थात् उच्चतम आदर्श प्रस्तुत करता है। नीति के विकास की आरंभिक रेखा ऋग्वेद में 'ऋत' के वर्णन से खींची जा सकती है जिसका उत्तरोत्तर विकास धर्म तत्त्व के रूप में हुआ। इसका दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक विवेचन उपनिषद् और कालांतर के दार्शनिक संप्रदायों में प्राप्त होता है ।