वाल्मीकि रामायणानुसार महावीर हनुमान् के उड्डयन प्रसङ्ग का विश्लेषण
कीर्ति
सहस्रों वर्षों से अनेकानेक विद्याओं की भूमि रही यह भारत धरा स्वयं में अनन्त ज्ञान समेटे हुए है । वाल्मीकि रामायण में अनेक ऐसे रहस्य हैं जिन्हें पढ़कर वर्तमान मानव कदाचित् उन पर विश्वास नहीं करता परन्तु ज्ञान-विज्ञान से परिपूर्ण प्रसङ्ग ज्ञान के अभाव में रहस्य ही बने हुएं हैं । उन्हीं विशिष्ट प्रसङ्गों को वैज्ञानिक विश्लेषण की तुला में तोलकर सत्य तक पहुंचने का प्रयास महावीर हनुमान् के उड्डयन प्रसंग में किया गया है । महावीर हनुमान् का जो वर्णन महर्षि वाल्मीकि ने किया है वह उनके प्रेरणीय दिव्य-भव्य व्यक्तित्व को प्रकट करता है । ज्ञान के साथ अध्यात्म के दिव्य संगम का यह मेल मानव तन की अलौकिक शक्तियों या कहें कि पारलौकिक अदृश्य ईश्वरीय आभा से प्राप्त बल का ज्ञान कराता है । यह कहना कदापि गलत नहीं है कि यदि भौतिक ज्ञान लोक में विशिष्टता की पदवी देता है तो योग-अध्यात्म ज्ञान का मिलन मानव देह को ईश्वर के ऐश्वर्य से युक्त कर उसे स्वयं भगवत्ता की प्राप्ति कराता है और महावीर पूज्य हनुमान् जी का चरित्र हमें यही जताता है ।