दर्शन मानव की शाष्वत सम्पत है। जब से मानव जाति का आरंभ है तभी से दर्षन का भी आरंभ मानना चाहिए। इस संसार का सृष्टा कौन है? संसार की कोई सर्वोपरि नियंत्रण शक्ति अवष्य है। कर्म फल अवष्य ही भोग्य है इस प्रकार की धारणाएॅ एवं जिज्ञासाए मानव स्वभाव में अन्तर निहित है। वैदिक ऋषि ने ऐहिक एवं पारलौकिक रहस्यों का साक्षात्कार करते हुए परम सत तत्व को समस्त ब्रम्हाण्ड का आधार कहते हुए मनोभावी आस्तिक दर्शन परम्परा का षिलान्यास किया। उपनिषदों में जिस वेदांत सम्मत दर्षन की प्रतिष्ठा हुई तथा शंकराचार्य ने जिस अद्वैतवात का महान प्रासाद निर्मित किया उसका बीज मंत्र भी ऋग्वेद संहिता में उक्त सत तत्व ही है। इस सत तत्व का आधुनिक परिपे्रक्ष्य में प्रदर्षित किया जा रहा है।