प्रस्तुत शोध-पत्र, सौन्दर्य तथा उसके स्वरूप पर आधारित है। सौन्दर्य एक ऐसा दिव्य तत्त्व है, जो मनुष्य की चेतना को जन्म से ही आकर्षित करने लगता है। सौन्दर्य चिन्तन में रूचि भेद के कारण सबका अपना अलग-अलग दृष्टिकोण होता है। देश एवं काल के अनुसार सौन्दर्य की परिभाषा बदलती रहती है। कला-जगत् एवं प्राणी-जगत् में उसके बाह्य तथा आन्तरिक रूपों में सौन्दर्य की उद्भावना को लेकर प्राचीन काल से आधुनिक काल तक अनेक चिन्तकों ने अपने-अपने मत प्रस्तुत किए हैं। उन मतों का अध्ययन करना इस शोधपत्र का उद्देश्य है।