वल्लभाचार्य के मत में ब्रह्म स्वरूप क्या है? इस विषय को प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में वर्णित किया गया है। इनके मत में जीव और ब्रह्म भिन्न-भिन्न नहीं अपितु जीव ब्रह्म का ही अंश मात्र है। इनके अनुसार माया के सम्बन्ध से रहित होने के कारण यह ब्रह्म शुद्ध है। इसी कारण इन्हें शुद्धाद्वैती कहा गया है। कहने का अभिप्राय यह है कि जब तक माया का ज्ञान है तब तक शुद्ध ब्रह्म को नहीं जाना जा सकता।