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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2023, Vol. 9, Issue 1, Part B

इक्‍कीसवीं सदी में संस्‍कृत वाड्0मय से अपेक्षायें एवं चुनौतियाँ

डॉ0 रुद्रेतपाल आर्य

वर्तमान में संस्‍कृत भाषा को कठिन, दुरूह एवं प्राय: मृतभाषा माना जाता है। यहाँ तक कि इसे बीते जमाने की भाषा नाम से भी सम्‍बोधित कर दिया जाता है। परन्‍तु सम्‍बोधक यह भूल जाते हैं कि संस्‍कृत भाषा ही विश्‍व की सबसे प्राचीन तथा जगत् में प्रचलित सभी भाषाओं की एकमात्र जननी भी है। संस्‍कृत भाषा के अतिरिक्‍त अन्‍य कोई ऐसी भाषा नहीं है जिसे ‘देवभाषा’ के नाम से सम्‍बोधित किया गया हो। यही एक सरल, सरस, मधुर, मन्‍जुल, संस्‍कारप्रदाता भाषा है शेष तो रसहीन, कठिन, एवं संस्‍कारहीन भाषाएँ हैं। संस्‍कृत वाड्०मय के कारण ही हमारा देश निखिल विश्‍व में ‘ज्ञानगुरु’ की उपाधि से विभूषित हुआ। अतएव 21 वीं शदी में भी संस्‍कृत वाड्०मय उपादेय है।
Pages : 81-84 | 494 Views | 220 Downloads


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How to cite this article:
डॉ0 रुद्रेतपाल आर्य. इक्‍कीसवीं सदी में संस्‍कृत वाड्0मय से अपेक्षायें एवं चुनौतियाँ. Int J Sanskrit Res 2023;9(1):81-84.

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