संसार में अनन्त शब्द विद्यमान है। शब्द की महत्ता तब होती है जब वह अपने उचित अर्थ के साथ समन्वित होता है। शब्द से अर्थ की प्रतीति का कार्य शब्दशक्ति द्वारा होता है। शास्त्रों में शब्दशक्ति के विवेचन में अभिधा शक्ति को मुख्य शब्दशक्ति के रुप में प्रतिपादित किया है। वाचक शब्द से वाच्यार्थ की प्रतीति कराने वाली अभिधा शक्ति हेतु संकेतग्रह को पर्याय माना गया है। आचार्य विश्वनाथ नें अभिधा को संकेतित अर्थ का बोधन कराने वाली शक्ति के रुप में निरुपित किया है। आचार्य विश्वनाथ द्वारा संकेतग्रह का अभिधा में स्थान, संकेतग्रह के उपाय, तथा क्षेत्र का विवेचन साहित्यदर्पण में किया है। आचार्य विश्वनाथ ने उपाधिशक्तिवाद सिद्धांत का पालन कर संकेतग्रह के क्षेत्र जाति, गुण, द्रव्य, क्रिया के निरुपण के साथ अभिधा शक्ति का विवेचन पूर्ण किया।