नाटककार विशाखदत्त क्रान्तिकारी नाटककार के रूप में जाने जाते हैं, क्योंकि इनके द्वारा रचित मुद्राराक्षस नामक नाटक राजनीतिपरक हैं। इसके नायक चाणक्य को राजनीति का धुरंधर आचार्य माना जाता है। प्रथम अंक में पूर्णरूपेण चाणक्य की राजनीतिक गतिविधि को बताया गया है तो द्वितीय अंक में राक्षस की।
राजनीतिक नाटक होने के बावजूद भी इसमें रोचकता दूसरे सामान्य नाटकों के समान ही आद्योपान्त बनी रहती है और अन्त तक दर्शको एवं पाठकों के मध्य कथा के विषय में उत्सुकता बरकरार रहती है।
तृतीय अंक में नाटककार ने कौमुदी महोत्सव के माध्यम से चाणक्य और चन्द्रगुप्त के मध्य बनावटी लडाई का आयोजन किया है, जो चाणक्य की राक्षस को वश में करने की योजना का एक अंग है। इसी कारण अन्तिम सप्तम अंक में राक्षस विवश होकर चन्द्रगुप्त के मन्त्री पद को स्वीकार कर लेता है।