कर्म-सिद्धान्त की सार्वभौमिक, सार्वकालिक, सार्वजनीन अभिव्यक्ति: श्रीमद्भगवद्गीता और कुरान के विषेष सन्दर्भ में
डॉ. आषुतोष पारीक
कर्मसिद्धान्त वैष्विक जीवन का आधार है। उन्नति और विकास का स्रोत है। कर्महीनता दुःख का कारण तो कर्मषीलता सुख का द्वार है। यही मानवीय लक्ष्यों की प्राप्ति एवं प्राणिमात्र में सृष्टि, स्थिति और प्रलयादि का केन्द्र है। कर्म को समझने के प्रयास प्रायः प्रत्येक संस्कृति और शास्त्रों के अप्रतिम लक्ष्य रहे हैं। इसी कारण कर्म को विविध स्वरूपों में परिभाषित करने के प्रयास आदिकाल से होते रहे। इन प्रयासों में वेदादि साहित्य के साथ वाल्मीकिप्रणीत रामायण, वेदव्यासप्रणीत महाभारत के भीष्म पर्व में श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवादात्मक श्रीमद्भगवद्गीता आदि में भक्ति, ज्ञान और कर्मयोग ने कर्मसिद्धान्तों के सार्वभौमिक, सार्वकालिक एवं सार्वजनीन स्वरूप को प्रतिपादित किया है। वहीं दूसरी ओर इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रन्थ कुरान में विविध प्रसंगों के माध्यम से कर्म का उपदेष दिया गया है। इस शोधालेख के माध्यम से इन दोनों ही महनीय पुस्तकों में वर्णित कर्मसिद्धान्तों की विष्लेषणात्मक अभिव्यक्ति का प्रयास किया गया है।
डॉ. आषुतोष पारीक. कर्म-सिद्धान्त की सार्वभौमिक, सार्वकालिक, सार्वजनीन अभिव्यक्ति: श्रीमद्भगवद्गीता और कुरान के विषेष सन्दर्भ में. Int J Sanskrit Res 2022;8(6):163-168. DOI: 10.22271/23947519.2022.v8.i6c.1929