Contact: +91-9711224068
International Journal of Sanskrit Research
  • Printed Journal
  • Indexed Journal
  • Refereed Journal
  • Peer Reviewed Journal

International Journal of Sanskrit Research

2022, Vol. 8, Issue 6, Part B

न्यायदर्शनानुसार आसत्ति विमर्श

डॉ. मधुबाला सिंह

शाब्दबोध की प्रक्रिया में शाब्दबोध के प्रति करण (पदज्ञान) का जितना महत्त्व है उतना ही शाब्दबोध के सहकारी कारणों का है। वाक्यस्थ पदों में योग्यता, आकाङ्क्षा, आसत्ति और तात्पर्य इन चारों का ज्ञान शाब्दबोध के प्रति सहकारी कारण के रूप में आवश्यक होता है। आसत्ति के लिए कुछ दार्शनिकों ने सन्निधि पद का प्रयोग भी किया है। आसत्ति और सन्निधि दोनों ही शब्दों से स्पष्ट है कि सामीप्य अथवा नैकट्य की बात कही जा रही है। अर्थात् वायस्थ पदों में सामीप्य होना चाहिए। यह सामीप्य किस प्रकार होता है? वाक्यस्थ पदों का बिना विलम्ब किये उच्चारण करना ही आसत्ति है। साथ ही वाक्य के पदों के मध्य कोई अन्य व्यवधान उपस्थित नहीं होना चाहिए, यथा एक वाक्य को समाप्त किए बिना ही अन्य वाक्य के पदों का उच्चारण करने से पदों के मध्य व्यवधान आ जाने से यहाँ आसत्ति नहीं होगी, जिससे श्रोता को शाब्दबोध नहीं हो पाएगा। इस प्रकार शाब्दबोध के प्रति आसत्ति की सहकारी कारणता अनिवार्य रूप से व्याख्यायित है।
Pages : 113-117 | 570 Views | 245 Downloads


International Journal of Sanskrit Research
How to cite this article:
डॉ. मधुबाला सिंह. न्यायदर्शनानुसार आसत्ति विमर्श. Int J Sanskrit Res 2022;8(6):113-117.

Call for book chapter
International Journal of Sanskrit Research
Journals List Click Here Research Journals Research Journals
Please use another browser.