जिस स्थान पर मनुष्य का आवास होता है, उसके आस-पास का वातावरण परिवेश कहलाता है। इसी भाँति सम्पूर्ण संसार के परिवेश को पर्यावरण की संज्ञा दी जाती है जिसके साथ मानव की अन्त: क्रिया होती है। जगत् में जो कुछ दृश्यमान है, पाँचभौतिक है। इन्हीं पंचमहाभूतों से ओत-प्रोत पर्यावरण की विशुद्धता एवं अविशुद्धता तथा इसके कारण व निवारण को विचारकर लेखक ने अपने शोध-पत्र का विषय बनाया है। साथ ही वेदों को अवलम्ब्य कर समस्त पाठकों को सचेत रहने की प्रेरणा भी दी है।