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International Journal of Sanskrit Research
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2022, Vol. 8, Issue 5, Part D

शिवरामेन्द्र सरस्वती का महाभाष्य टीकाकार के रूप में मूल्यांकन

रोहित कुमार

संस्कृत व्याकरण परम्परा में पातञ्जल महाभाष्य अपने आप में एक विशाल ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में व्याकरण के विषयों को संवाद शैली में सरल एवं रुचिकर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। लेकिन विषय इतना सरल नहीं है कि सभी लोग इसको आसानी से समझ सकें, इसलिए इस ग्रन्थ पर अनेक टीकाएँ लिखी गई। किसी भी ग्रन्थ पर टीका लिखने का मुख्य उद्देश्य यही होता है कि वह टीका जिस ग्रन्थ पर लिखा जा रहा है, उस मूलग्रन्थ में प्रतिपादित विषयों को सरलता से स्पष्ट किया जा सके। इसी परम्परा में महाभाष्य की अनेक टीकाओं में शिवरामेन्द्र सरस्वती की एक रत्नप्रकाश टीका भी है। इस टीका में टीकाकार ने बहुत ही सरल एवं सहज ढंग से विषयों को स्पष्ट किया है। मूल ग्रन्थ में प्रतिपादित विषयों को स्पष्ट करते समय टीकाकार उस विषय से सम्बन्धित पूर्ववर्ती उपलब्ध ग्रन्थों पर भी दृष्टिपात करते है। शिवरामेन्द्र सरस्वती रत्नप्रकाश टीका लिखते समय अपने समय के उपलब्ध व्याकरणग्रन्थों की अच्छी प्रकार से आलोचना भी करते हैं। इस शोध-आलेख में गवेषक के द्वारा महाभाष्य के टीकाकार के रूप में शिवरामेन्द्र सरस्वती कितने सफल रहे हैं, इसी बात को स्पष्ट करने का सार्थक प्रयास किया गया है।
Pages : 251-254 | 230 Views | 58 Downloads
How to cite this article:
रोहित कुमार. शिवरामेन्द्र सरस्वती का महाभाष्य टीकाकार के रूप में मूल्यांकन. Int J Sanskrit Res 2022;8(5):251-254.

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