International Journal of Sanskrit Research
2022, Vol. 8, Issue 5, Part B
वाल्मीकिरामायणादि रामचरितकाव्येषु हनुमतस्य दूतकार्यविमर्शः
वंदना कुमारी
दूतस्य सत्कारं राजप्रतिनिधि रूपेण भवति। भावाभिप्रायः तुलसीदासेन वर्णितो यथाः- तव नृप दूत निकट वैठारे। मधुरमनोहर वचन उचारे। दूतमुखात् श्री जनकस्य धनुर्यज्ञे रामस्य पराक्रमं श्रुत्वचा पुलकितो राजा दशरथः दूताय यथेष्टं पारितोषिकम् अददत्। दूत वचन रचना प्रियलागी। प्रेम प्रताप वीर रस पागी। सभा समेतराउ अनुरागे। दूतन्ह देन निछावरि लागि। कहि अनीति तेक्र्ह मूंदहि काना। धरमु विचारि सवहि सुखमाना। अयोध्याकाण्डे दशरथमरणान्तरं भरतनयनाय वशिष्ठेन दूतं प्रेषितम्ः- तेल नाव भरि नृप तनु राखा। दूत वोलाइ वहुरिअस भाषा धावहु वेगि भरत पहि जाहू। नृप सुधि कतहुँ कहह जनिकाहू।। ‘‘चार चक्षुषाः खलु राजानः‘‘ इति वुद्धेव श्री सुग्रीवः सीतामन्विस्यन्तौ ऋष्यमूकपर्वतागतौ रामलक्ष्मणौ वीक्ष्य श्री हनूमतं तयोः वास्तविकतां परिज्ञानाय प्रेषितवान्। तथ्यमिदं स्वकीयेे रामरचितमानसे उक्त×च तुलसीदासेन- अति समीत कहु सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल वलरूपनिधाना। धरि वटुरूप देखु तै जाई। कहेसु जानि जिय समन वुझाई पढए वालि होहि मनमैला। भागौ तुरत तजौ यह सैला। विप्ररूपं धृत्वा हनूमान्नपि रामलक्ष्मणौ नत्वा, परिचय कृत्वा स्कन्धोपरि नीत्वा मध्ये अग्निं संस्थाया उभयो राम सुग्रीवयोः मैत्राीं सम्पादितवान।
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वंदना कुमारी. वाल्मीकिरामायणादि रामचरितकाव्येषु हनुमतस्य दूतकार्यविमर्शः. Int J Sanskrit Res 2022;8(5):96-99.