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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2022, Vol. 8, Issue 4, Part B

अनूदित संस्कृत-साहित्य: वैश्विक संवाद का सेतु

जितेन्द्र कुमार

भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, संस्कृति और चेतना की संवाहिका भी है। जब विचारों की यह गंगा एक भाषा से दूसरी भाषा में प्रवाहित होती है, तो उसे ‘अनुवाद’ कहते हैं। यह अनुवाद केवल शब्दों की अदला-बदली नहीं, बल्कि भाव, दृष्टिकोण और संस्कृति का पुनर्जन्म है। विशेष रूप से संस्कृत, जो भारत की आत्मा, वेदों की वाणी और दर्शन की मूलधारा है– उसका अनुवाद, मानो भारतीयता को विश्व में प्रवाहित करना है।

संस्कृत को मात्र प्राचीन भाषा कहना उसकी गरिमा का अपमान है। यह वह भाषा है जिसकी व्याकरणिक शुद्धता वैज्ञानिक है, जिसकी ध्वनि में संगीत है और जिसमें विश्वदृष्टि समाहित है। प्राकृत, पालि, अपभ्रंश और आधुनिक भारतीय भाषाओं से इसका सतत अंतर्संबंध रहा है। कालिदास, भास, भवभूति जैसे नाट्यकारों ने लोकभाषाओं से उसका संगम कराया और उसे जीवंत बनाए रखा।

इस शोधपत्र में संस्कृतेतर भारतीय भाषाओं तथा विभिन्न विदेशी भाषाओं से संस्कृत में अनूदित साहित्य की चर्चा की है। इस संदर्भ में इस अनुवाद कार्य के प्रभाव, विशेष रूप से अनूदित संस्कृत साहित्य का योगदान, तथा अनूदित संस्कृत साहित्य की शक्ति, कमजोरी और अवसर पर प्राप्त ज्ञान को संक्षेप में प्रस्तुत किया है।
Pages : 124-127 | 21 Views | 8 Downloads


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How to cite this article:
जितेन्द्र कुमार. अनूदित संस्कृत-साहित्य: वैश्विक संवाद का सेतु. Int J Sanskrit Res 2022;8(4):124-127.

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