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International Journal of Sanskrit Research
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2022, Vol. 8, Issue 3, Part F

गीतं वाद्यं तथा नृत्यं त्रयं संगीतमुच्यते

Dr. Supriya Sanju

भारतीय दर्शन के अनुसार मानव जीवन मृत्यु के चक्रों में फंस कर सांसारिक दुखों में उलझता जाता है। किन्तु इस सृष्टि में ईश्वर ने मानव मन को शीतलता और शांति प्रदान करने हेतु और दुखी हृदय को शोक तथा संशय से दूर करने हेतु कलाओं की उत्त्पति की है। वैदिक ग्रंथों में चौसठ कलाओं की चर्चा है। जिनमें संगीत को सर्वोच्य कला के रूप में माना जाता है। संगीत रत्नाकर के अनुसार गीतं वाद्य तथा नृत्य त्रयं सगीतमुच्यते - अर्थात् गीत वाद्य और नृत्य - इन तीनों का समुच्चय ही संगीत है। परन्तु भारतीय संगीत का अध्ययन करने पर यह आभास होता है कि इन तीनों में गीत की ही प्रधानता रही है तथा वाद्य और नृत्य गीत के अनुगामी रहे हैं। एक अन्य परिभाषा के अनुसार सम्यक् प्रकारेण यद् गीयते तत्संगीतम् - अर्थात् सम्यक् प्रकार से जिसे गाया जा सके वही संगीत है। अन्य शब्दों में स्वर ताल शुद्ध आचरण हाव-भाव और शुद्ध मुद्रा के गेय विषय ही संगीत है। वास्तव में स्वर और लय ही संगीत का अर्थात् गीत, वाद्य और नृत्य का आधार है।
Pages : 323-327 | 1499 Views | 124 Downloads
How to cite this article:
Dr. Supriya Sanju. गीतं वाद्यं तथा नृत्यं त्रयं संगीतमुच्यते. Int J Sanskrit Res 2022;8(3):323-327.
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