स्याद्वाद जैनदर्शन के अंतर्गत किसी वस्तु के गुण को समझने, समझाने और अभिव्यक्त करने का सापेक्षिक सिद्धान्त है । प्रसिद्ध जैनाचार्य समन्तभद्र ने जैनपरम्परा में सर्वप्रथम ‘न्यायशब्द’ का प्रयोग किया और न्यायशास्त्र में स्याद्वाद का गुम्फन किया । प्रस्तुत लेख में आचार्य समन्तभद्र और उनकी प्रमुख दार्शनिक कृतिओं के विषय में चर्चा करके जैनन्याय के अंतर्गत स्याद्वाद का विश्लेषण किया गया है ।