वेदार्थ मीमांसा में वाजसनेयि-प्रातिशाख्य की भूमिका
पिंटू कुमार
वैदिक मन्त्रों के अर्थ ज्ञान में स्वर की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका है । स्वर के ज्ञानाभाव में वेदार्थ मीमांसा सम्भव नहीं है। स्वर के द्वारा ही मन्त्रों के अर्थ का निर्णय हो पाता है। प्रातिशाख्य ग्रन्थों में भी वैदिक स्वर से सम्बन्धित नियम प्रतिपादित है। ये नियम मन्त्रों के अर्थ ज्ञान में अत्यन्त सहायक है। प्रातिशाख्य में प्रतिपादित इन विधानों का ज्ञान नहीं होने पर अर्थ तथा स्वर के विषय में संशय बना रहता है। अतः प्रातिशाख्य में प्रतिपादित स्वर सम्बन्धी विधान स्वर तथा अर्थ के निश्चय में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। आचार्य कात्यायन कृत वाजसनेयि-प्रातिशाख्य में वर्णित स्वर-सम्बन्धित विधान वेदार्थ मीमांसा में सहायक प्रतीत होते हैं।