Contact: +91-9711224068
International Journal of Sanskrit Research
  • Printed Journal
  • Indexed Journal
  • Refereed Journal
  • Peer Reviewed Journal

Impact Factor (RJIF): 8.4

International Journal of Sanskrit Research

2022, Vol. 8, Issue 2, Part D

कालिदास की अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक और देवकोटा की शाकुन्तल महाकाव्य का पारिस्थितिक अध्ययन

डा. हेमन्तकुमार नेपाल

परिवेष शब्द दोनों शब्द व्यवहार में समान अर्थबोध के लिए प्रयोग किया जाता हैं। इनका वातावरण के साथ ही विभिन्न अर्थ अभिव्यक्त होते हुए भी साधारण जनमानस को ज्ञात होने वाली साङ्केतिक अर्थ वातावरण ही हैं और अन्य अर्थ लाक्षणिक रूप में व्यक्त होते हैं। विमर्श या विमर्ष शब्द का भी एक ही अर्थ अभिव्यक्त होने से दोनों शब्द में अर्थगत रूप से कोही भिन्नता नही पाया जाता हैं। प्रत्यक्षरूप में इसने विचारविनिमय विषयवस्तु पर किये जानेवाले विवेचना वा विचार, अवलोकन समीक्षा, आलोचना आदि अर्थ बोध कराता हैं। इस तरह से देखने पर परिवेश विमर्श को वातावरण का आलोचना, समीक्षा वा प्रकृति का आलोचाना समीक्षा भी कहा जा सकता हैं। परिस्थिति शब्द में इक प्रत्यय लगाकर परिस्थितिक शब्द का निर्माण किया जाता हैं। इसका प्राज्ञिक अर्थ “समसामयिक वातावरण से सिर्जित हुए” होता है। इस में योजन किया गया इक प्रत्यय से स्थिति अर्थ का बोध होता हैं।इस लेख पर संस्कृत साहित्य के महाकवि कालिदास की अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक और नेपाली साहित्य के महाकवि लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा की शाकुन्तल महाकाव्य का स्थूल रूप में तत्-तत् कालिन मानव एवं वातावरण वा प्रकृति विच का अन्तसम्बन्ध और अन्तर्सम्बन्ध फतिनिधि पद्यों द्वारा विवेचन करने की प्रयास किया गया हैं। संस्कृत साहित्य के महाकवि कालिदास की अभिज्ञानशआकुन्तलम् नाटक और नेपाली साहित्य के महाकवि लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा की शाकुन्तल महाकाव्य में तत्-तत्कालिन मानिस और वातावरण वा प्रकृतिविच की अन्तसम्बन्ध एवं अन्तर्सम्बन्ध अभिव्यक्त्त हुआ है। दोनों साहित्य के महाकवियों ने दोनों साहित्य में मानिस को प्रकृति का अभिन्न अङ्ग के रूप में स्थापित करके प्रकृति ही मानव की सर्वस्व है इस विचार को व्यक्त किया। मानिस का प्रकृति प्रति का आदर्श प्रेम प्रस्तुत किया है। कृति में प्रयोग किए गए पात्रों का व्यवहार एवं मानसिकस्थिति घटना के स्वभाव अनुरूप प्रकृति का परस्पर सामाञ्जस्यता स्थापित किया है। दोनों कृति में प्रकृति एवं मानवीय प्रकृति के स्थूल मलिन, उग्र और शान्त आदि सब रूप चित्रित हैं। इन सब में प्रकृति प्रधान प्रधान होने से मानवीय जीवन प्रकृति में निर्भर हैं। प्रकृति अनुरूप मानवीय जीवन में विभिन्न स्थिति परिवर्तन होते हैं। अतः प्रकृति और मानिस पृथक न होकर मानिस प्रकृति का ही अंश है इस भाव अभिव्यक्त हुआ हैं। प्रकृति के ही अंश मानव हैं इस कथन को दोनों माहाकवियों की कृतियों ने चेतना प्रदान किया हैं।
Pages : 189-192 | 387 Views | 114 Downloads
How to cite this article:
डा. हेमन्तकुमार नेपाल. कालिदास की अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक और देवकोटा की शाकुन्तल महाकाव्य का पारिस्थितिक अध्ययन. Int J Sanskrit Res 2022;8(2):189-192.

Call for book chapter
International Journal of Sanskrit Research
Journals List Click Here Research Journals Research Journals
Please use another browser.